तु ममता की मूरत नाही,तू मट्टी की मूरत है,
जो बीगाड़ा मरदो ने, तू ऐसी ही एक सूरत है,
आॉंखो मे भरकर पानी तू और होती कमज़ोर है,
उठो करो मुक़ाबला,पहचानो अपना मर्तबा,
जिसे दिया जन्म तूने, क्या उस्से तू मजबूर है,
क्या भूल गई ईस्लाम की बातें, भूल गई वो कहानियां,
भूल गई उन शहिद औरतों की ज़बानीयां,
बढ़ो अपने हक़ की ख़तीर, सबसे ऊंचा मर्तबा तूम्हारा,
इस रूहे ज़मीं की चान्दनी तूम हो
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